"कृष्ण नहीं.......१५०६०१"
कल्प सत्य धारावाहिक कहानी:
फल प्रकरण: १२/ कल्प: ०६/भाग: ०१
"कृष्ण नहीं......"
कल्प: "नैराश्य"
अन्धकार-प्रकाश, झूठ-सच, कल्प-सत्य घटनाओं, संवेदनाओं, भावनाओं तथा विचार धाराओं पर आधारित विगत १५ वर्षों से सतत साक्षी भाव से देखी और अत्यंत आंशिक रूप से लिखी जाने वाली कल्प सत्य धारावाहिक कहानी "कृष्ण नहीं आये" (कृष्ण नहीं) का यह नैराश्यपूर्ण कल्प चल रहा है. प्रति वर्ष एक प्रकरण में अनेक कल्पों के रूप में अभिव्यक्त होनें की संभावना रखने वाली इस कहानी के पन्द्रहवें प्रकरण का न जाने यह कितना नम्बर कल्प है और क्या नाम दूं इस कल्प का?! चलिए...... इसे नैराश्य कल्प कहते हैं, परकरण का नाम है फल- १२.
विगत पंद्रह वर्षों में, पंद्रह प्रकरणों (भूमि, बीज, फसल तथा फल-०१ से फल-१२ तक) में कोई भी परकरण 'सफल प्रकरण' नहीं घोषित हो पाया है. निश्चित रूप से फल आये हैं - अनेकानेक श्रृष्टियों के, सृजनात्मक शक्तिओं तथा साधक संसार (ATAMAPA= All Types Adequate Meditating Personalities Assembling) के दो सौ प्रयाप्त व्यक्तित्यों (Adequate Personalities) के काफी लगनशील तथा सतत प्रयासों के, लेकिन ............सारे फल असफलता के हैं- सफलता के कोई नहीं! कोई प्रकरण सफल प्रकरण नहीं हुआ .........सारे असफल??!!
अज्ञात संसार (AGYATA SANSAR) के ११ आलोकों (अतलों) और लोकों (तलों) के ऊपर और नीचे के मध्य में अवस्थित छट्ठे तल (Sixth World) में, फिर से पूर्ण अन्धकार सर्वव्याप्त है. अन्धकार का ऐसा काल अभी से १५ वर्षों पूर्व - ३ वर्षों के लिए गुजरा था - इस्वी सन १९९४ से १९९६ तक. ये तीन वर्ष स्वामी अमृतानन्द सरस्वती के अज्ञातआश्रम में अज्ञातवास के १४ वर्षों (सन १९८३ से १९९७ तक) के अंतिम तीन वर्षों के थे.
एक बार फिर आये इस अन्धकाल में, नैराश्य काल में साधक संसार के 'शुभ शक्ति संघ' के संसद भवन में साधक संसार के सरे साधकगण (प्रयाप्त व्यक्तित्व = Adequate Personalities), के साथ "शून्य अलोक" (SHOONYA ALOK) के सरे महादेव , देवगण, देवियाँ, अवतार, पगाम्बर, अध्यात्मिक गुरुगण तथा अनगिनित महान व्यक्तित्व जो मनुष्यता के दिव्या आकाश में चमकने वाले सितारे हैं - अवतरित हैं, आसन ग्रहण किये हुए हैं.
"शुभ शक्ति संघ" के इस विरत सभा में अध्यक्ष 'अग्निकेंद्र' के प्रबोधन भाषण में विचार-विमर्श, तर्क-वितर्क, विश्लेषण, ध्यान तथा संधान के लिए जो विषय तथ्य हैं वो इस प्रकार हैं-
क्या माहि पर अवतरित और साँस लेने वाले सरे अध्यात्मिक, सामाजिक, सृजनात्मक व्यक्तित्व सच में असमर्थ हो गए हैं, निष्प्राण हो गए हैं? क्या शून्य्स अलोक, प्रेम अलोक, स्वामि अलोक और देव अलोक की साडी महाशक्तियां और शक्तियां शक्तिहीन हो गयीं हैं?